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Writer's pictureDeeksha Saxena

बादल

मैं बैठी थी यूंही की

सामने से एक बादल आया,

लगा कुछ कहा उसने

मगर समझ न आया,

बहुत वक्त बाद मिले हम शायद

जुगलबंदी नही बन पाई,

हुआ कुछ यू की वो पास आया

और बस ज़ुल्फ लहराई,

एक कसक उठी मन में

जो साथ वो बैठा आकर,

लम्हा वो ठहर गया वही

बस उस लम्हे को पाकर,

खामोश बैठे दोनो, की धड़कनों ने बातें,

नज़रें मिली, और खुल गईं कुछ मीठी यादें,

यादों की उस बारिश में

मन कुछ ऐसा भीग गया,

की हर एक बूंद में मन

हर वो लम्हा जी गया,

सहसा कुछ ऐसी हरकत हुई,

मन में फिर एक कसक उठी, कि

वो लम्हा जो ठहरा था आकर,

वो अब बीत चला था,

पास जो बैठा था बादल आकर,

वो बादल अब बरस चला था।


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